माता


माता तीन प्रकार की होती हैं। एक जन्म देने वाली, दूसरी पृथ्वी माता ,तीसरी गौ माता। जन्म देने वाली माता वह है जिसके गर्भ में हमारा जीवन पनपता है। यह माता परमात्मा के बहुत निकट होती है। उसके जरायुज में एक बिंदु जाता है और उसी से पुत्र की प्राप्ति होती है। गर्भ स्थल में परमात्मा ने उस बिंदु से इस शरीर का निर्माण कर दिया।

      माता के गर्भ से अलग होकर बालक पृथ्वी माता पर आता है। वह इसे नाना वनस्पतियां  तथा अन्य देती है। खनिज पदार्थ और खाद्य पदार्थ देती है इस माता के गर्भ में आकर कोई प्राणी अध्यात्मवेत्ता  बन जाता है, कोई वैज्ञानिक बनकर खाद्य पदार्थों, खनिज पदार्थों, सूर्य चंद्र आदि का अनुसंधान करता है।

  तीसरी माता गौमाता होती है ।जो हमें दूध देती है‌

। उसके दूध को पीकर हम बलवान,ओजस्वी और ब्रह्मचारी बनते हैं।

  जिस राजा के राष्ट्र में गउओं की रक्षा होती है वहां किसी प्रकार की हानि नहीं होती। *पूजा कहते हैं सदुपयोग को*।

 गऊ की पूजा यह है कि उसे अच्छा खाने पीने को दिया जाए  और उससे दूध लिया जाए। दूध राष्ट्र की महान संपत्ति है।

*माता की पूजा है माता की सेवा करना। उसे अनेक प्रकार की सुविधाएं देना। हमें उसका श्रद्धालु बन करके उसके कष्टों का निवारण करना चाहिए।* -ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त जी महाराज (पूर्व जन्म के श्रृंगी ऋषि।)

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