रामराज्य की स्थापना भगवान राम ने कैसे की?

रामराज की स्थापना
गाजियाबाद (एसपी चौहान)।
 एक बार भगवान राम ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा था कि महाराज मैं जानना चाहता हूं कि मेरा राष्ट्र रावण की अत्याचारों से भयभीत है इसलिए आप बताएं कि मेरा राष्ट्र राम राज्य कैसे बन सकता है? उस समय वशिष्ठ बोले हे राम, अगर तुम अपने राष्ट्र को राम राज्य बनाने चाहते हो तो तुम्हें विष्णु बनना होगा। जब तक तुम विष्णु नहीं बनोगे तुम्हारा राज्य रामराज्य किसी प्रकार से नहीं बन सकेगा। राम बोले भगवान व्याख्या करिए कि मैं विष्णु कैसे बन सकता हूं? वशिष्ठ बोले राम सुनो सबसे पहले तुम्हारी भुजा में एक पदम होना चाहिए। पदम नाम है सदाचार और शिष्टाचार का। जिस राजा के राष्ट्र में सदाचार शिष्टाचार होता है उस राजा का राष्ट्र पवित्र कहलाता है और जिसके  राष्ट्र में सदाचार नहीं होता, हृदय में एक दूसरे के प्रति सम्मान नहीं होता, तो वह जान लो कि वह राष्ट्र आज नहीं तो कल अवश्य समाप्त हो जाएगा! उन्होंने कहा कि हे राम यदि तुम अपने राष्ट्र को पवित्र बनाना चाहते हो तो अनिवार्य है कि तुम्हारी एक भुजा में पद्म होना चाहिए। राजा के राष्ट्र में यथार्थ विद्या होनी चाहिए। विद्या में सदाचार और शिष्टाचार की तरंगे होनी चाहिए। यह विद्या सर्वोत्तम मानी जाती है, यही विद्या राष्ट्रको सफल बना देती है। हे राम यह पद्म तुम्हें  ऊंचा बना सकता है। तुम संसार पर शासन कर सकते हो अगर सदाचार और शिष्टाचार नहीं है तो तुम्हारा राष्ट्र राम राज्य कदापि नहीं बन सकेगा।
     तुम्हारे  हाथ में गदा होनी चाहिए। गदा नाम है क्षत्रियों का।  राजा के राष्ट्र में क्षत्रिय बलवान होने चाहिए। उन्हें अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए, ब्रह्मचर्य उनका पुष्ट होना चाहिए। जिस राजा के राष्ट्र में अपराधी को दंडित किया जाता है वह राष्ट्र सदैव रामराज बन सकता है।  जिस राजा के राज्य में अपराधियों को दंड नहीं मिलता हो उसे राजा का राष्ट्र आज नहीं तो कल अवश्य नष्ट हो जाएगा। इसलिए हे राम तुम्हें गदा को स्थिर करना है। अपराधियों को दंड देना है। दुराचारियों को नहीं रहने देना है। तीसरा तुम्हारे एक हाथ में चक्र होना चाहिए। चक्र नाम संस्कृति का है। जिस राजा के राज्य में संस्कृति होती है, उसके राष्ट्र में चक्र होता है, संस्कृति उस अमूल्य वाणी को कहते हैं जो मानव को सदाचार और शिष्टाचार देने वाली होती है। संस्कृति कौन सी वाणी को कहते हैं? जो संस्कृति राष्ट्र से लेकर कृषि में, व्यापार में, धनुर विद्या में और नाना प्रकार के यंत्रों का आविष्कार करने में ,सदाचार में, ब्रह्मचर्य की सुरक्षा करने में और अपनी आत्मा की उन्नति करने में और परमात्मा तक पहुंचने में प्रयुक्त होने वाला ज्ञान जिस वाणी में तो प्रोत हो उसे वाणी का नाम हमारे यहां संस्कृति कहते हैं। हे राम! इसको आज तुम्हें विचारना है। यदि तुम्हें अपने राष्ट्र में रामराज्य बनाना है तो संसार में चक्र फैलाओ।
इसके बाद राम ने प्रश्न किया है कि भगवान मुझे शंख का निर्णय और क्या दीजिए। मैं इस शंख को जानना चाहता हूं। ऋषि बोले शंख  नाम वेद ध्वनि का है। जिस राजा के राष्ट्र में भेद नहीं होती है वह भी जाटा- पाठ में माला - पाठ में ,माला- पाठ में,धन-पाठ में, विदानद- पाठ में और भी नाना प्रकार के स्वरों में जहां भी वेदों का पाठ गया जाता है उसे राष्ट्र में अंतरिक्ष भी वेद मंत्रों  के पाठ से अच्छादित रहता है। जिस राजा के राष्ट्र में सदाचार की शिक्षाएं ,वेद की शिक्षाऐं दी जाती है वहां का वातावरण उत्तम होता है। मनुष्य की विचारधारा ऊंची होती है। सदाचार और शिष्टाचार रहता है।
 हे राम आज शंख ध्वनि का प्रश्न किया है।शंख ध्वनि नाम वेद ध्वनि का है, ज्ञान का है। हे राम जिस राजा के राष्ट्र में यज्ञ होते हैं और यज्ञों में वेदों का पाठ होता है, उस राष्ट्र में काम करने वाले देवता भी प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होकर उस राजा के राष्ट्र को और प्रजा को और राजा को मन वांछित फल देते हैं। हे राम तुम्हें अपने राष्ट्र को ऊंचा बनना है तो तुम्हें विष्णु बनना पड़ेगा।(अतीत का दिग्दर्शन से साभार)।
 

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