सत्य सनातन वैदिक धर्म और महाकुंभ की जय हो
मेरी महा कुंभ यात्रा खट्टे मीठे अनुभवों के साथ
प्रयाग नगरी(एसपी चौहान)।
मेरी प्रयागराज नगरी की कुंभ यात्रा आज खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ सवेरे 7:00 बजे 18 फरवरी 2025 को संपन्न हो गई। इस यात्रा में अयोध्या में भगवान श्री राम और हनुमानगढ़ी के दर्शन थे। लेकिन राम लाला के दर्शन मुझे छोड़ने पड़े। क्योंकि मैं पहले भी एक बार दर्शन भगवान श्री राम (राम लला) के कर चुका था। इस यात्रा के कटु अनुभव मुझे आगे बढ़ने के लिए इजाजत नहीं दे रहे थे।
144 साल बाद आने वाले इस महाकुंभ के लिए हर सनातन धर्म को मानने वाला उतना ही लालायित रहता है जितना इस समय मैं था। इस विशेष कुंभ को ध्यान में रखकर मैंने एक समूह के साथ बस द्वारा महाकुंभ प्रयागराज में जाने का निर्णय लिया था। यात्रा की शुरुआत से ही कड़वे अनुभव होने लगे थे। एक सज्जन की वजह से यात्रा पौने दो घंटे बाद देरी से शुरू हुई और आयोजक अपने आप को असहाय समझ रहे थे।
मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आयोजक अच्छे लोग नहीं थे, बल्कि वे भले लोग हैं लेकिन कुछ लोगों की वजह से यह आयोजन सवालों के घेरे में आ गया।
भीड़ बहुत थी रास्ते जाम बहुत थे रात में हमारी यात्रा प्रयागराज पहुंची और हमने पैदल ही वहां से त्रिवेणी संगम पर नहाने के लिए प्रस्थान किया। हमने करीब 25 से 30 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी की। मेरे साथ पांच लोग और थे जिनमें तीन महिलाएं तीन पुरुष मेरे सहित थे।उनसे पहले परिचय नहीं था लेकिन वह मुझे जानते थे और वे भले लोग थे। मैं सवेरे 2:30 बजे हम त्रिवेणी संगम घाट पर पहुंच गए। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि हमें दुकानदारों ने भी सलाह दी कि जितना जल्दी स्नान करके यहां से चले जाओगे उतना ही आपको अच्छा रहेगा। 4:00 बजे भोर में हमने स्नान कर लिया। हमें भीड़ को देखकर यह अनुभव हो गया था कि हम में से भी कोई गायब हो सकता है। यानी बिछुड़ सकता है। जैसे भीड़ में लोग आ रहे थे और झुंड का जो व्यवहार होता है उससे आप समझ सकते हैं कि भीड़ का व्यवहार कैसा होता है? हम किसी तरह से वहां से निकले बाहर जाने का रास्ता पूछा और पैदल चल दिए। हमें कोई भी सवारी नहीं मिली। हमारे ग्रुप की महिलाएं बेदम हो चुकी थीं।थोड़ी दूर के लिए हमें एक ई रिक्शा मिला, जिसने चुंगी तक पहुंचाया। वहां से हमारे लिए कोई सवारी नहीं मिली ।यहां तक कि सामान ढोने वाले रिक्शे जिसे आदमी चलाता है वह भी हमें गंतव्य ले जाने के लिए तैयार नहीं हुए। एक कार वाले ने हमसे 2500 रुपए मांगे, कार पर एडवोकेट का स्टीकर लगा था। हमने हां भर दी लेकिन वह अपनी हरकत से बाज नहीं आया। सवारियों को भेड़ बकरी की तरह बैठाने का उसका मंसूबा था तो हमने मना कर दिया। खैर नतीजा यह हुआ कि हमने वह कार छोड़ दी। इसके बाद हमें एक ऑटो मिला उसने प्रति सवारी 100 रुपए मांगे। हमसे कहा ठीक है।तो कहने लगा कि आप तो 6 लोग हो उसे नौ लोग मिल रहे हैं। हमने कहा कि हम 900रुपये ही देंगे,तुम इन सवारियों को उतार दो। तब उसने हमें गंतव्य तक पहुंचा। गंतव्य तक पहुंचने से पहले उसने कहा कि वह 1000 रुपये लेगा। उसे गंतव्य ढूंढने में परेशानी हुई है। हमने उसे एक हजार रुपए दिए और अपनी बस तक पहुंच गए।
सवेरे 7:00 बजे से लेकर के 2:00 बज गए लेकिन हमारी यात्रा के संयोजक कोई निर्णय नहीं सके कि उन्हें अब क्या करना है? क्योंकि एक यात्री गुम हो गए थे उन्हें ढूंढ तो लिया गया था लेकिन वह नई-नई शर्तें रख रहे थे। कह रहे थे कि बस भेज करके मुझे यहां से ले जायें, वह स्वयं बस तक नहीं आएगा। इस यात्रा के कटु अनुभव के कारण अनेक लोगों ने साहिबाबाद वापस आने के लिए अपनी मांग रखी। जिस बस में मैं बैठा था वह ट्रैवलर बस थी, उसको मुझे छोड़ना पड़ा क्योंकि छोटी बस को साहिबाबाद वापस भेजने का निर्णय आयोजकों ने लिया था।क्योंकि मुझे भगवान श्री राम के दर्शन करने थे और अयोध्या जाना था। लेकिन विषम परिस्थितियों में आयोजकों के सही निर्णय नहीं लेने कारण करीब 25- 26 लोगों में मेरा नाम भी जुड़ गया। मुझे दिख रहा था कि आयोजकों के सही निर्णय नहीं लेने की वजह से मैं भगवान राम के दर्शन नहीं कर सकूंगा और मेरा एक दिन और खराब हो जाएगा।
जब मैं ट्रैवलर बस में पहुंचा तो मैं उम्र में सबसे बड़ा था इसके बावजूद मेरे लिए कोई सीट देने को कोई तैयार नहीं था । मुझे बताया गया सबसे पीछे वाली सीट पर बैठ जाओ।मरता क्या न करता मैं बैठने गया तो देखा कि सीट पर ग्रहण लगा हुआ है। एक सज्जन पहले ही सोए हुए थे। उनकी पत्नी ने उनकी सीट भी घेर रखी थी। मैंने उनसे प्रार्थना की कि या तो आप अपनी सीट पर बैठ जाइए नहीं तो अपनी पत्नी से कहिए कि उस पर मुझे बैठने दें। फिर उन्होंने मेरे लिए सीट छोड़ दी।मैं उस पर लेट गया, यह स्लीपिंग सीट थी।
रात्रि में जब मैं लघु शंका के लिए गया तो फिर वही सजन मेरी सीट पर लंबे हुए थे।अपनी मीठी-मीठी बातों में 2 घंटे तक मुझे ऐसे ही बैठा रखा, सुकुड़ा हुआ एक कोने में। मैंने उनसे कहा कि माफ करिए और अपनी सीट पर जाइए फिर वे चले गए। लेकिन बेशर्म कहां माने, वह फिर आये और मेरे बराबर में फिर से लेट गए। मैंने उन्हें फिर साहिबाबाद तक झेला। सवेरे 7:00 बजे हम मेट्रो स्टेशन श्याम पार्क पर उतरे,मेरे साथ यहां 8-10 लोग और उतरे थे।
महाकुंभ के मेले की वजहसे प्रयागराज में चारों तरफ लूटमार थी मोटरसाइकिल वाले यात्रियों से पहले 1000 वसूलते थे फिर 500 रुपये और हमारे समय में 200 प्रति व्यक्ति ले रहे थे। दो सवारियों को कम से कम सीट पर बैठा ते थे। वह कहां छोड़ दें यह उनकी मर्जी है बस कह दिया कि संगम आ गया। अन्य व्यवस्थाएं भी फायदा उठाने वाली थीं। कुल मिलाकर के प्रयागराज लूटमार की नगरी बनी हुई थी। फिर भी हम सनातनी अपनी श्रद्धा के लिए सब कुछ सह लेते हैं।
लेकिन प्रयागराज शहर साफ सुथरा नहीं था इसमें गंदगी ही गंदगी थी। मैं मेला क्षेत्र की बात नहीं कर रहा। मेला क्षेत्र में सफाई व्यवस्था कुल मिलाकर ठीक थी। पुलिस वालों को व्यवहार दोनों तरह का था कुछ प्यार से बात करते थे और कुछ पुलिसकर्मी व्यवहार से ठेठ भाषा में कहा जाए तो खडूस थे।
टीवी की दुनिया और आम आदमी की दुनिया दोनों अलग-अलग होती है। टीवी और अखबार वाले सरकार से विज्ञापन पाते हैं और वह नकारात्मक खबरों को नहीं लिखते अगर लिखने भी है तो वह बहुत ही कम। यानी कलम साध के लिखा जाता है। यही हाल टीवी वालों का है। वह व्यवस्था हमें नहीं दिखाई दी, जो टीवी पर और अखबारों में दिखाई जाती है। यहां दो तरह की दुनिया है। एक आम आदमियों के लिए जो कीड़े मकोड़ों की जिंदगी जीते हैं और गंगा स्नान करते हैं। दूसरी दुनिया है वीआईपी लोगों की । एक तीसरी दुनिया भी है ये वह है जो वीआईपी तो नहीं है लेकिन किसी अधिकारी के कृपा पात्र जरूर होते हैं।
यह मैं मानता हूं कि देश की सत्ता से जुड़े पक्ष- विपक्ष के सभी नेताओं और बड़े पद्दशीन अधिकारियों को वीआईपी सुविधा मिलनी चाहिए यह उनकी सुरक्षा और पदानुसार होता है। लेकिन आम आदमी को भेड़ बकरी की तरह बंदोबस्त मिले यह कहां की सही बात है? क्योंकि यही तो वे लोग हैं जो लोकतंत्र में सरकार चुनते हैं, यह प्रश्न मेरा है सरकार में बैठे लोगों से।
Comments
Post a Comment